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उत्तराध्ययन सूत्र
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प्राप्त होती हैं परन्तु आदर्श साध; उनका कमी दुरुपयोग नहीं करते किन्तु फिर भी महाराजा को डर लगना स्वाभाविक था क्योंकि टनका हृदय स्वयं दोप स्वीकार कर रहा था।
___ ममाधि टूटने पर साधुने अपनी आंखें खोली । सामने अपनी हाथ अधि हुए भयभीत राजा को खड़ा देख कर वे घोले । (११) हे राजन् ! तुम अभय होवो ! और अब से तू भी
( अपने से क्षुद्र) जीवों के प्रति अभय ( दान का ) दाता हो जा । अनित्य इस जीवलांक (संसार) में हिसा के
कार्य में क्यों श्रासक्त होता है ? टिप्पणी-जये त मेरे भय से मुक्त हुआ वैसे ही त भी आज मे तेरे
भय से सब जीवों को मुक्त कर दे। अभयदान के समान कोई दूसरा दान नहीं है। क्षणिक इस मनुष्य जीवन में ऐसी घोर
हिंसा के काम क्यों करते हो ? (१२) यदि राजपाट, महल मकान, वागवगीचा, कुटुम्ब कबीला ।
और शरीर को छोड़ कर तुझे आगे पीछे कभी न कभी कर्मवशात जाना ही पड़ेगा तो अनित्य इस संसार में
राज्य पर भी प्रासक्त क्यों होता है ? (१३) जिसपर तू मोहित हो रहा है वह जीवन तथा रूप ये तो
बिजली के कौदा (चसकारा.) के समान एक क्षण स्थायी हैं। इसलिये हे राजन् ! इस लोक की चिंता छोड़ कर परलोक की कुछ चिंता कर । भविष्य परिणाम को तू क्यों
नहीं सोचता ? (१४) स्त्री, पुत्र, मित्र अथवा बन्धुवांधव केवल जिन्दगी में ही . साथ देते हैं। मरने पर कोई साथ नहीं देता।