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पापश्रमणीय
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उपाश्रय सुन्दर मिला है पहिरने के लिये वस्त्र मिले हैं, खाने के लिये मालपानी भी उत्तम ही मिल जाया करते हैं तथा जीवादिक पदार्थों को तो मैं जानता ही हूँ तो फिर अब (अपने गुरु के प्रति ) हे आयुष्मन् ! हे
पूज्य ! कहने की तथा शास्त्र पढ़ने की क्या जरूरत है ? टिप्पणी:-ऐसी विचारणा केवल प्रमाद की सूचक है। संयमी को ___ हमेशा मनन पुर्वक शास्त्राध्ययन करते रहना चाहिये । (३) जो संयमी बहुत सोने की आदत डालते हैं अथवा
आहार पानी कर ( खा पीकर ) बाद में जो बहुत देर
सोते रहते हैं वे पापी श्रमण हैं। टिप्पणी-संयमी के लिये दिनचर्या तथा रात्रिचर्या के भिन्न २ कार्य
निर्दिष्ट हैं तदनुसार क्रमपूर्वक सभी कार्य करने चाहिए। (४) विनय मार्गे ( संयम मार्ग) तथा ज्ञानं की जिन आचार्य
तथा उपाध्याय द्वारा प्राप्ति हुई है उन गुरुओं को जो ज्ञान प्राप्ति के बाद निन्दा करता है अथवा उनका तिरस्कार
करता है, वह पापी श्रमण कहलाता है। (५) जो अहंकारी होकर आचार्य, उपाध्याय तथा अन्य संगी
साधुओं की सद्भान पूर्वक सेवा नहीं करता है, उपकार को भूल जाता है अथवा पूज्यजनों की पूजा सन्मान नहीं
करता वह पापी श्रमण कहलाता है। (६) जो त्रस जीवों को, वनस्पति अथवा सूक्ष्म जीवों को दुःख
देता है; उनकी हिंसा करता है वह असंयमी है फिर भी वह अपने को संयमी माने तो वह पापी श्रमण कह. लाता है।