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पाप श्रमणीय
पापी साधु का अध्ययन
गयम लेने के बाद उसको निभाने में ही साधुता हैं।
__ यदि त्यागी जीवन में भी प्रासक्ति अथवा अहंकार जागृत हो तो त्याग की इमारत डगमगाये विना न रहै। ऐसे श्रमण, त्यागी नहीं है किन्तु उनकी गणना पापी श्रमणों में की जाती है।
___ भगवान वोले(१) त्याग धर्म को सुनकर तथा कर्तव्य परायण होकर जो
कोई दीक्षित हो वह दुर्लभ चोधिलाम करके फिर सुख
पूर्वक चारित्र का पालन करे।। टिप्पणी-बोधिलाम अर्थात् आत्मभान की प्राप्ति । आरममान की प्राप्ति
के बाद ही चारित्र मार्ग में विशेष दृढ़ता आती है। चारित्रमार्ग में दृढ़ होना ही दीक्षा का उद्देश्य है। खाना, पीना, मजा करना आदि
बातें त्याग का उद्देश्य नहीं है। (२) संयम लेने के बाद कोई कोई साघु ऐसा मानते हैं कि