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________________ ब्रह्मचर्य समाधि के स्थान १६५ नित्य है। इस धर्म को धारण कर अनेक जीवात्माएं मोक्ष को प्राप्त हुई हैं, प्राप्त हो रही हैं और प्राप्त होंगी ऐसा तीर्थकर ज्ञानी पुरुषों ने कहा है। टिप्पणी:-आदर्श ब्रह्मचर्य यद्यपि सब किसी को सुलभ नहीं है किन्तु वह आकाश कुसुमवत् - भशक्य भी नहीं है। ब्रह्मचर्य मुमुक्षु के लिये तो जीवनधन है। सत्यशोधक के लिये वह मार्ग दीपक है और आत्म-विकास की प्रथम सीढ़ी है। इसलिये मन, वचन और काय से यथा शक्य ( शक्ति के अनुसार) ब्रह्मचर्य का आराधन करना, ब्रह्मचर्य की प्रीति को बढ़ाते रहना, तथा ब्रह्मचर्य रक्षण के लिये उपर्युक्त वस नियमों पर चलना यही उचित है। ऐसा मैं कहता हूँ:इस तरह "ब्रह्मचर्य समाधि ( रक्षण) के स्थान" नामक सोलहवां अध्याय समाप्त हुआ। ANN
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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