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उत्तराध्ययन सूत्र
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मन को लुभाने वाली स्त्रीकथा, (३) स्त्रियों का परि__ चय, (४) स्त्रियों के सुन्दर अंगोपांग देखना(१२) (५) स्त्रियों के कोयल के से मीठे शब्द, गीत, रुदन,
हास्य, प्रादि शब्द, (६) स्त्री के साथ भोगे हुए भोगों का स्मरण, (७) स्वादिष्ट भोजन खाना, (८) मर्यादा
के बाहर भोजन करना(१३) (९) कृत्रिम सौंदर्य बढ़ाने के लिये शरीर की टापटीप
करना और (१०) पंचेन्द्रियों के दुर्जय विषय भोग ये १० बातें आत्मशोधक जिज्ञासु के लिये तालपुटक (भयंकर
विप) के समान हैं।। टिप्पणी-उपरोक्त तीन श्लोकों में पूर्वकथित वस्तुएं विशेष स्पष्टता से
गिनाई हैं। (१४) तपस्वी भिक्षु; दुर्लभ काम भोगों को जीत कर जिन २
बातो से ब्रह्मचर्य में क्षति पहुंचने की संभावना हो ऐसे सब शंका के स्थानों को भी हमेशा के लिये त्याग देवे। धैर्यवान् तथा सद्धर्मरूप रथ के चलाने में सारथी के समान ऐसा भिक्षुक धर्म रूपी उद्यान में ही विचरे और उसीमें अनुरक्त होकर इन्द्रिय दमन कर ब्रह्मचर्य में ही
समाधि लगावे। (१६) देव, दानव, गंध, यक्ष, राक्षस तथा किन्नर जाति के
देव भी उस पुरुष को नमस्कार करते हैं जो अत्यन्तः दुष्कर, दुर्धर ऐसे ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। (ब्रह्म--
चारी की देव भी सेवा करते हैं) (१७),यह ब्रह्मचर्य रूपी धर्म निरंतर स्थिर ( शाश्वत ) तथा