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उत्तराध्ययन सूत्र
(७) तृणादि की शय्या, पाट, या बाजोठ, स्वाध्याय को पीठि
का, बैठने की चौकी, पग पोंछने का वस्त्र, कंवल आदि समी वस्तुओं को संभाल पूर्वक देखभाल कर काम में लावे। जो कोई इन्हें देखे भाले विना काम में लाता है
वह पापी श्रमण कहलाता है। टिप्पणी:-जैन शास्त्रों में संचमी को दिन में दो बार अपने साधनों की
देखभाल करने को भाज्ञा दी गई है क्योंकि वैसा न करने से सूक्ष्म जीवों की हिंसा होने की संभावना रहती है। इसके सिवाय भी
अनेक अनर्थों के होने की भी सम्भावना है। (८) जो अपने संयम मार्ग को न शोभे ऐसे कृत्य करे; वारंवार
क्रोध किया करे अथवा प्रमादपूर्वक जल्दी २ गमन करे
वह पापी श्रमण कहलाता है। (९) जो देखे विना जहाँ तहाँ अव्यवस्थित रीति से अपने पात्र,
वल, आदि साधनों को छोड़ दे अथवा उन्हें देखे भी
तो असावधानी से देखे, वह पापी श्रमण कहलाता है। टिप्पणी:अव्यवस्था तथा असावधानता ये दोनों संयम में वाधक हैं। (१०) जो अपने गुरु का वचन से या मन से अपमान करता
है तथा अनुपयोगी बातें सुनते २ असावधानी से प्रति लेखन (निरीक्षण) करता है वह पापी श्रमण कह
लाता है। (११) जो बहुत कपट किया करता है, असत्य भापण करता है,
अहंकार करता है, लोभी या श्रजितेन्द्रिय है, अविश्वासु तथा असंविभागी (अपने साथी मुनियों से छिपाकर