________________
१६१
णाम स्वरूप ब्रह्मचर्य खंडित होजाने का डर है । इसलिये ब्रह्मचर्य को विभूषानुरागी न होना चाहिये” ।
ब्रह्मचर्य समाधि के स्थान
टिप्पणी- सौन्दर्य की आसक्ति अथवा शरीर की टापटीप करने से विषय-वासना जागृत होने की संभावना है। सादगी और संयम ये ही ब्रह्मचर्य के पोषक हैं ।
(१०) स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, शब्द आदि इन्द्रियों के विषयों में जो आसक्त नही होता है वही साधु ( ब्रह्मचारी ) है । शिष्यः – 'क्यों, भगवन् ? '
-
-
आचार्यः – “स्पर्श, रस, गंध, वर्ण और शब्द आदि विषयों में आसक्त ब्रह्मचारी के ब्रह्मचर्य में उपर्युक्त क्षतियां ( शंका, कांक्षा, विचिकित्सा ) होने की संभावना है जिससे क्रम से संयमधर्म से पतन, आदि सभी दूषण लग सकते हैं । इसलिये स्पर्शादि पंचेन्द्रियों के विषयों में जो श्रासक्त नहीं होता है वही साधु ( ब्रह्मचारी ) है ।
इस तरह ब्रह्मचर्यं के १० समाधि स्थान पूर्ण हुए । अब तत्संबधी श्लोक कहते हैं जो निम्र प्रकार हैं:--
भगवान बोले:
(१) (आदर्श) ब्रह्मचारी को ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिये स्त्री, पशु तथा नपुंसक रहित ऐसे आत्म चिंतन के योग्य एकान्त स्थान का ही सेवन करना चाहिये ।
( २ ) ब्रह्मचर्य में अनुरक्त हुए भिक्षुको; मन को क्षुब्ध करनेवाली तथा विषयों की आसक्ति बढानेवाली स्त्री कथा ( कहना ) छोड़ देनी चाहिये ।
११
1
1