________________
१६०
उत्तराध्ययन सूत्र
N
, संभावना है। इसलिये ब्रह्मचारी (साध) को स्वादिष्ट
अथवा पुष्टिकर भोजन न.खाने चाहिये ।" टिप्पणी-स्वादिष्ट भोजन में चरपरा (तीखा), नमकीन, मीठा . • भादि रसनेन्द्रिय की लोलुपता की दृष्टि से किये हुए बहुत से
भोजनों का समावेश होता है। रसनेन्द्रिय की असंयतता ब्रह्मचर्य खंढन का सत्र में प्रथम तथा प्रबल कारण है और उसके संयम
से ही ब्रह्मचर्य का रक्षण होता है । (८) जो मर्यादा के उपरान्त अति आहार पानी (भोजन पान। नहीं करता वहा साधु है । '.
शिष्यः-"क्यों, भगवन् ?"
आचार्य:-"अति भोजन करने से उपर्युक्त सभी दूषण लगने का डर है जिससे ब्रह्मचर्य के खंडन तथा संयमधर्म स पतन होजाना संभव है। इसलिये ब्रह्मचारी,
को अति भोजन पान न करना चाहिये। टिप्पणी-अति भोजन करने से अंग में मालस्य आता है, दुष्ट भावनाएं
जागृत होती है और इस तरह क्रमशः उत्तरोत्तर ब्रह्मचर्य मार्ग में विनवाधाएं आती नाती हैं। (९) जो शरीर विभूपा (शृंगार के निमित्त शरीर की टापटीप)
करता हो वह साधु नहीं है। । । । ., शिष्यः-क्यों, भगवन् ?
आचार्य:-"सचमुच ही सौन्दर्य में भूला हुआ और शरीर की टापटीप 'करने वाला.ब्रह्मचारी खियों को प्राक'पक होता है, और इससे उसके ब्रह्मचर्य में शंका, कांक्षा, ,विचिकित्सा होने की संभावना रहती है. जिसके परि