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ब्रह्मचर्य समाधि के स्थान
उपर्युक्त सभी हानियां होने का डर है । इसलिये ब्रह्मचारी पुरुष को स्त्री संबंधी कथा न कहनी चाहिये ।"
टिप्पणी - श्रृंगार रस की कथायें कहने से पतन का डर है । अतः उन्हें तो त्याग ही देना चाहिये । साथ ही साथ साधु को कभी भी अकेली स्त्री से एकान्त में वार्तालाप करने का प्रसंग न आने देना चाहिये ।
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(३) जो स्त्रियों के साथ एक आसन पर नहीं बैठता वह श्रादर्श.
साधु
है।
शिष्य : - 'क्यो, भगवन्' ? आचार्य :-- “ स्त्रियो के साथ एक आसन पर पास पास बैठने से एक दूसरे के प्रति मोहित होने का तथा ऐसे स्थान में दोनों के ब्रह्मचर्य में उपर्युक्त दूषण लगने का डर है । इसलिये ब्रह्मचारी पुरुष को स्त्री के साथ, एक आसन पर नहीं बैठना चाहिये ।
टिप्पणी- जैनशास्त्र तो जिस स्थान पर अन्तमुहूर्त ( ४८ मिनिट ).
पहिले कोई स्त्री बैठी हो उस स्थान पर भी ब्रह्मचारी को बैठने का निषेध करते हैं । जिस प्रकार ब्रह्मचारिणी को स्त्रियों से सावधानी रखनी चाहिये वैसे ही ब्रह्मचारी को पुरुषों से भी सावधानी रखनी चाहिये | खासकरके ऐसे प्रसंग एकान्त के कारण आते हैं । फिर भी यदि कोई आकस्मिक ऐसा प्रसंग आ पड़े तो वहां विवेक पूर्वक आचरण करना उचित है ।
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( ४ ) स्त्रियों की सुन्दर, मनोहर तथा आकर्षक इन्द्रियों को विषय बुद्धि से न देखे ( कैसी सुन्दर हैं, कैसी भोग योग्य हैं ? ऐसा विचार न करे ) और न उनका चितवन ही करे । जो स्त्रियों का चितवन नहीं करता वही साधु