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' उत्तराध्ययन सूत्र
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शिष्यः-'क्यों, भगवन् ?'
आचार्य:-स्त्री, पशु या नपुंसक सहित आसन शय्या, या स्थान का सेवन करने वाले ब्रह्मचारी को ब्रह्मचर्य पालन करने में शंका (ब्रह्मचर्य पालुं कि न पालू) उत्पन्न हो सकती है अथवा दूसरों को शंका हो सकती है कि स्त्री सहित स्थान में रहता है तो यह ब्रह्मचारी है या नहीं ? (२) आकांक्षा (इच्छा) निमित्त पाकर मैथुनेच्छा जागृत होने की संभावना है। (३) विचिकित्सा (ब्रह्मचर्य के फल में संशय )-उक्त प्राणियो के साथ रहने से 'ब्रह्मचर्य पालने से क्या लाभ ?' ऐसी भावना होने की संभावना है। कभी २ ऐसे दुर्विचार होने से
और एकान्त स्थान मिलने से पतन होने का विशेष भय रहता है और मैथुनेच्छा से उन्मत्त होने का डर है। ऐसे विचारों या दुष्काय से परिणाम में दीर्घकाल तक टिकने वाला शारीरिक रोग हो जाने का डर है और इस तरह क्रमशः पतित होने से ज्ञानी द्वारा वताये हुए सद्धर्म से च्युत होजाने का डर है। इस प्रकार विषयेच्छा अनर्थों की खान है और उसके निमित्त स्त्री, पशु अथवा नपुंसक हैं। इसलिये ये जहां रहते हों ऐसे स्थानों में निग्रंथ साधु
न रहे। (२) जो खी कथा (शृंगाररसोत्पादक वार्तालाप ) नहीं करता उसे साधु कहते हैं।" शिष्यः-'क्यों, भगवन् ?' आचार्य:-"त्रियों की श्रृंगारवर्द्धक कथाएं कहने से