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ब्रह्मचर्य समाधि के स्थान
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हुई अपनी सांसारिक वासनाओं के जागृत हो जाने का सदैव डर लगा रहता है। इसलिये जागरूक साधक को आत्मोन्नति के लिये तथा विशुद्ध ब्रह्मचर्य की आराधना के लिये, भगवान महावीर द्वारा कथित अनुभवों में से जो २ उसको उपयोगी हों उनको ग्रहण कर अपने अनुभव में लाना चाहिये-यह मुमु. तुमात्र का सर्वोत्तम कर्तव्य है। .
सुधर्म स्वामी ने जम्बू स्वामी से यों कहा:-"हे आयुष्मन् ! मैंने सुना है कि भगवान महावीर ने ऐसा कहा था जिनशासन में स्थविर भगवानों (पूर्वतीर्थंकरों) ने ब्रह्मचर्य समाधि के १० स्थान बताये है जिनको सुनकर तथा हृदय से धारण करके भिक्षु, संयमपुष्ट, संवरपुष्ट, समाधिपुर, जितेन्द्रिय होकर गुप्त (ब्रह्मचारी ) बन कर अप्रमत्त प्रात्मलक्षी बनकर विचरता है।"
(शिष्य ने पूछा:-) "भगवन् ! ब्रह्मचर्य समाधि के कौन से स्थान स्थविर भगवान ने कहे हैं जिनको सुनकर तथा ग्रहण करके भिक्षु; संयमपुष्ट, संवरपुष्ट, समाधिपुष्ट जितेन्द्रिय होकर गुप्त ब्रह्मचारी बनकर अप्रमत्त प्रात्मलक्षी बनकर विचरता है ?"
(गुरु ने कहा:-) सचमुच स्थविर भगवानों ने इस प्रकार दस ब्रह्मचर्य समाधि के स्थान फरमाये हैं कि जिनको सुनकर तथा ग्रहण करके भितु; संयमपुष्ट, संवरपुष्ट, समाधिपुष्ट, और जितेन्द्रिय होकर गुप्त ब्रह्मचारी बने कर अप्रमत्त प्रात्मलक्षी बन कर विचरता है। वे १० समाधि स्थान इस प्रकार है:(१) स्त्री, पशु तथा नपुंसक रहित उपाश्रय तथा स्थान का जो
सेवन करता है वही निथ (आदर्श मुनि) कहा जाता है। जो (साधु) स्त्री, पशु तथा नपुंसक सहित उपाश्रय शय्या अथवा स्थान का सेवन करता है उसे निग्रंथ नहीं कहते।