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स भिक्खू
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न करता हो, जितेन्द्रिय (इन्द्रियों को जीतने वाला), आन्तरिक तथा बाह्य बंधनों से मुक्त, अल्प कषायवाला, थोड़ा तथा परिमित भोजन करने वाला तथा घर को
छोड़कर जो रागद्वेष रहित हो विचरता है वही साधु है। टिप्पणी-वेश परिवर्तन साधुता नहीं है किन्तु साधु का बाह्य चिन्ह
है। साधुता, अक्रोध, अवैर, अनासक्ति और भनुपमता में है सब कोई ऐसी साधुता को धारण कर स्वयम् कल्याण की साधना करें।
ऐसा मैं कहता हूँ। इस प्रकार 'स भिक्खू' नामक पन्दरहवां अध्याय समाप्त हुआ।
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