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उत्तराध्ययन सूत्र
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: तथा सामान्य स्थिति के घरों में भी जाकर जो भिक्षावृत्ति
करता है वहीं साधु है। टिप्पणी-मिक्षु; संयमी जीवन निर्वाह के उद्देश्य से भोजन ग्रहण
करना है। जिहा की लोलुपता को शांत करने के लिये रसाल तथा स्वादिष्ट भोजन की इच्छा कर धनिक दाता के यहां मिक्षार्थ
जाना-साधुस्त्र की त्रुटि कहनी चाहिये । (१४) इस श्लोक में देव, पशु अथवा मनुष्यों के अनेक प्रकार
के अंत्यन्त भयंकर तथा द्वेपोत्पादक शब्द होते हैं। उनको मुनकर जो नहीं डरता. (विकार को प्राप्त नहीं होता)
वही साधु है। टिप्पणी-पहिले नमाने में साधु विशेष करके जंगलों में रहा करते थे
और तब ऐसी परिस्थिति होने की विशेष संभावना थी। (१५) लोक में प्रचलित भिन्न २ प्रकार के वादों ( तन्त्रादि . शास्त्रों ) को समझकर, अपने अात्म धर्म को स्थिर रख ... कर संयम में दत्त चित्त पंडित पुरुप; सब परिपहों को जीत : , कर, समस्त जीवों पर अात्म भाव रख कर कषायों को
वश में रक्ख और किसी जीव को जरा भी पीड़ा
न पहुंचा। एसी वृत्ति से जो विचरता है वही . साधु है। टिप्पणी-जिनने माये उतनी सूझे होती हैं। सबकी राय जुही २
होनी है। इसी कारण भिन्न २ धर्मों तथा पंथों का प्रचार हुआ , है। परन्तु वास्तविक धर्म (सत्य ) के कोई विभाग नहीं हो
सकते। वह तो सर्वकाल में और सब जगह समान ही होता है। (१६) जो शिल्पविद्या ( कारीगरी) द्वारा अपना जीवन निर्वाह .