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स भिक्खू
वही साधु है
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सार में पतन के निमित्त बहुत हैं इसलिये साधक को
सावधान रहना चाहिये । भिक्षु का कर्तव्य है कि वह वस्त्र तथा आहार आदि श्रावश्यक वस्तुओं में भी संयम रक्खे। यह उसकी साधक दशा के लिये जितना उपयोगी है उतना ही उपयोगी सत्कार, मान अथवा प्रतिष्ठा की लालसा को रोकना है।
विविध विद्याऐं, जो त्यागी जीवन में उपयोगी न हो उन को सीखने में समय का दुरुपयोग करना यह संयमी जीवन के लिये विघ्न समान है। तपश्चर्या तथा सहिष्णुता ये ही दो
आत्मविकाश रूपी गगन में उड़ने के पंख है। भिक्षु को चाहिये कि इन दोनों पंखों को खूब संभाल के साथ लेकर ऊंचे ऊंचे श्राफाश में विचरे।
___ भगवान वोलेजो सच्चे धर्म को विवेक पूर्वक अंगीकार कर, अन्य भिक्षुओं के संघ में रहकर, निहाण (वासना ) को नष्ट