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उत्तराध्ययनसूत्र
(५१) इस तरह उक्त क्रम में ये छहों जीव जरा ( बुढ़ापा ) तथा मृत्यु के भय से खिन्न होकर धर्मपरायण बने और दुःखों के अंत ( मोक्ष ) की शोधकर वे क्रमपूर्वक बुद्ध ( केवल ज्ञानी ) हुए ।
(५२) वीतराग ( जीत लिया है मोह जिसने ऐसे ) जिनेश्वर के शासन में पूर्व भव में भाई हुई भावनाओं का स्मरण करके वे छहों जीव दुःखों के अन्त ( मोक्ष ) को प्राप्त हुए ।
(५३) देवी कमलावती, राजा, पुरोहित ब्राह्मण ( भृगु ), उसकी पत्नी जसा त्राह्मणी, उसके दोनों पुत्र इस तरह ये छहों जीव मुक्ति को प्राप्त हुए । सुधर्म स्वामी ने जंबूस्वामी को कहा :- 'ऐसा भगवान् ने कहा था' इस प्रकार इपुका -
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रीय नामक चौदहवां श्रध्ययन समाप्त हुआ ।
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