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इषुकारीय
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जिस तरह सांप गरुड़ से बच २ : हम को भी भोगों से डर डर के चलना ) चाहिये |
(४८) हे महाराज ! जैसे हाथी सांकल
आदि के बंधन तोड़कर
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अपने स्थान ( विन्ध्याचल, श्रटवी श्रादि) में जाने से : आनन्दित होता है, वैसे ही सांसारिक बंधन छूटने से जीवात्मा परम आनन्द को प्राप्त होता हैं । हे इषुकार राजन् ! मैंने ऐसा ( अनुभवी सुज्ञ पुरुषों के द्वारा ) सुना है और यही हितकर है - ऐसा आप जानो । टिप्पणी-सन्नारी भी पुरुष के बराबर ही सामर्थ्य रखती है । पुरुष और स्त्री ये दोनों भात्मविकास के समान साधक है । जिस तरह पुरुष को ज्ञान तथा मोक्ष पाने का अधिकार है वैसे ही स्त्रियों को भी है। योग्यता ही आगे बढ़ाती है, फिर चाहे वह स्त्री हो या पुरुष हो । (४९) ( कमलावती रानी का ऐसा तत्वविवेचन उपदेश सुनकर राजा की मोहनिद्रा भंग हुई और ) बाद में रानी तथा राजा अपना विस्तृत राज्य पाट और कठिनता से त्यागयोग्य ऐसे मोहक कामभोगों को छोड़ कर विषयमुक्त स्नेहमुक्त, आसक्तिमुक्त तथा परिग्रहमुक्त हुए ।
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कर चलता है वैसे ही चलना ( विवेक पूर्वक
- अन्तरङ्ग तथा बाह्य मिल कर सबै रूपी काष्ठ को जलाने में तपश्चर्या
भिक्षु
(५०) उत्तम भोगों को छोड़ने के बाद अतिपुरुषार्थी उस दंपति ने सच्चे धर्म के स्वरूप को समझकर सर्व प्रसिद्ध तपश्चर्या अंगीकार की ।
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१२ प्रकार की तपश्चर्या अभि का कार्य करती है ।
किया है ।