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इषुकारीय ।
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वह शरीरनाश के साथ २ नष्ट ही होती है। भात्मा; अक्षय, भमर तथा शाश्वत है । कोष्ट, दूध तथा तिल में अग्नि, घी तथा तेल प्रत्यक्ष न देखने पर भी इनका अध्यक्त अस्तिस्व उनमें है । उसी तरह शरीर धारण करते समय कर्मों से घिरी हुई भास्मा , उसमें है और शरीर पतन के साथ २ वह उसको छोड़कर दूसरे शरीर में
प्रविष्ट होती है। (१९) (पुत्रों ने कहाः-).हे पिताजी ! आत्मा अमूर्त होने से
इंद्रियों द्वारा देखा या छुआ नहीं जा सकता। और 'सचमुच अमूर्त होने से ही वह नित्य माना जाता है।
आत्मा नित्य होने पर भी जीवात्मा में स्थित अज्ञानादि दोषों के बंधन में बंधा हुआ है। यही बंधन संसार परि
भ्रमण का मूल है ऐसा महापुरुषों ने कहा है। टिप्पणी-यावन्मात्र अमूर्त पदार्थ नित्य ही होते हैं। जैसे भाकाश ., अमूर्त है तो वह निस्य भी है। परन्तु भाकाशद्रव्य भखंढ नित्य है किन्तु जीवात्मा ( कर्म से बंधा हुभा जीव ) परिणामी नित्य है
और इसीलिये कर्मवशात् वह छोटे बड़े आकारों के ( रूपों में)
शरीर के अनुरूप होकर ऊंच नीच गतियों में गमन करता है। , (२०) आज तक हम मोह के बंधन से। धर्म का स्वरूप नहीं
जान सके थे और इसीलिये भवचक्र में रुंधे हुए थे, तथा काम भोगों में आसक्त हो होकर पापकर्मों की परंपरा को पढ़ाते जाते थे । परन्तु अब तो सब कुछ जानकर फिर वैसा काम नहीं करेंगे। दूधारक समय हम ज्ञान से शरीर के 'मोह में भासत
4 आदि भापके जैसी