________________
१३६
उत्तराध्ययन सूत्र
-
संयम क्यों लेते हो ? किन्तु सच्ची बात तो यह है कि संयम, योग अथवा तप का मुख्य उद्देश्य भौतिक सुख प्राप्ति है ही नहीं, केवल
मात्म सुख के लिये ही ये साधन हैं। (१७) (पुत्रों ने जवाब दिया:-) हे पितानी! सत्यधर्म की
धुरा धारण करने के अधिकार में स्वजन, धन या कामभोगों की कुछ भी आवश्यकता नहीं होती। उसके लिये ही हम प्रतिबंध रहित होकर निर्द्वद विचरने वाले
और भिक्षानीत्री वनकर गुण समूह को धारण करने वाले
साधु होना चाहते हैं। टिप्पणी-इस छोटे से घर का ममत्व छोड़कर समस्त विश्व को हम
अपना घर मानेंगे और भिक्षाजीवी आदर्श साधु होकर भास्मगुण
की भाराधना करेंगे। (१८) जैसे अरणि ( काप्ट) में अग्नि, दूध में घी और तिलों में
तैल प्रत्यक्षरूप से दिखाई न देने पर भी ये सब वस्तुएं संयोग मिलने से पैदा होती है वैसे ही हे पुत्रो! पंचभूतात्मक शरीर में से ही जीव उत्पन्न होता है। शरीर के भस्मीभूत होने पर श्रात्मा जैसी कोई भी वस्तु नहीं रहती । (तो फिर यह कष्ट साधन क्यों करते हो ? धर्म
कर्म की क्या जरूरत है ?) टिप्पणी-चार्वाक मत का यह कथन है कि पंचमहाभूत से ही
शक्ति उत्पन्न होती है और वह शरीर के नाश होते ही नाती है । अर्थात् भारमा जैसी कोई स्वतंत्र वस्तु है
हीरा किन्तु यह मान्यता भ्रान्त हैं. शक्ति है और मात्र भस्तित्व भी है। RRIAL चिम."