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चित्त संभूतीय
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तथा उम्र तपश्चर्या धारण कर, एवं श्रेष्ठ संयम का पालन कर सिद्ध गति को प्राप्त हुए ।
टिप्पणी-भोगों को भोगने के बाद उनको त्याग करना बड़ा ही कठिन है और उनकी आसक्ति हटाना तो और भी कठिन है । भोग के जाल से निकल भगना बहुत ही कठिन है इसलिये मुमुक्षु जीव को भोगों से दूर ही रहना चाहिये । 'ऐसा मैं कहता हूँ'
इस प्रकार चित्तसंभूतीय नाम का तेरहवां प्रकरण.
समाप्त हुआ ।
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