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उत्तराध्ययन सूत्र
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(१७) तपश्चर्या रूपी धन से धनवान् , चारित्र गुणों में लीन,
और काम-भोगों की आसक्ति से विलकुल विरक्त ऐसे भिक्षुओं को जो सुख होता है वह सुख, हे राजन् ! अज्ञानियों को मनोहर लगने पर भी अनेक दुःखों को
देने वाले ऐसे कामभोगों में कभी हो ही नहीं सकता। (१८) हे नरेन्द्र ! मनुष्यों में नीच, माने जाते ऐसे चांडाल
जीवन में भी हम तुम दोनों साथ ही साथ थे। उस जन्म में (कर्मवशात् ) हम पर बहुत से श्रादमियों ने अप्रीति की थी तथा हम चाण्डाल के स्थानों में भी रहे
थे। (ये सब वातें तुम्हें याद है कि नहीं ?) - टिप्पणी-चांडाल जाति का अर्थ यहां डाल कर्म करने वाले से है।
जाति से तो कोई ऊंच या नीच होता ही नहीं। कर्म (कृति) से ऊँचा नीचापन भाता है। यदि उत्तम साधन पाकर भी पिछले भव में की हुई गफलन को इस समय फिर की तो आत्म
विकास के बदले पतित हो जाभोगे-इसीलिये पूर्वमव की बातें - याद दिलाई हैं। (१९) जिस तरह चांडाल के घर जन्म लेकर उस दुष्ट जन्म में
हम तमाम लोगों की निन्दा के पात्र हुए थे, फिर भी शुभ कर्म ( तपस्या ) करने से आज इस स्थिति को पहुंचे हैं वह भी पहिले किये गये कर्म का ही फल है। (यह
न भूलना।) 'टिप्पणी-इसी चांडाल जन्म में (पर्वत पर ) जैन साधु का
मिलने से त्यागी होकर हमने जो शुद्ध कर्म किये थे उन्हीं रह सुन्दर फल हमको मिला है। जमाने में ब्राह्मण झिी हाकाली, का समानता कृ
RETARIKET श्रिमः .
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