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चित्तसंभूतीय
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त्रण दिया ) उच्च, उदय, मधु, कर्क, और ब्रह्म नाम के पांच सुन्दर महल, भिन्न २ प्रकार के दृश्य (रङ्गशालाए) तथा मंदिर पांचाल देश का राज्य आज से तुमको दिया।
हे चित्त ! तुम प्रेम पूर्वक उसे भोगो । (१४) (और ) हे भिक्षु ! विविध वाजिंत्रों के साथ नृत्य करती
हुई और मधुर गीत गाती हुई मनोहर युवतियों के साथ लिपट कर इन रम्य भोगों को भोगो। यही मेरी इच्छा
है । त्याग यह तो सरासर कष्ट है। (१५) उमड़ते हुए पूर्व स्नेह से तथा काम भोगों में आसक्त हुए.
महाराजा ब्रह्मदत्त को उसके एकान्त हितचिन्तक तथा संयम धर्म में लग्न ऐसे चित्त मुनि ने इस प्रकार
जवाब दिया:(१६) सभी गायन एक प्रकार के विलाप के समान हैं, सभी
प्रकार के नृत्य या नाटक विटंबना रूप हैं, सारे अलंकार बोझ के समान हैं, और सभी कामभोग एकान्त दुःख
के ही देने वाले हैं। टिप्पणी-यह सारा संसार हो जहाँ एक महान् नाटक है वहां दूसरे
नाटक क्या देखें ? जिसजगह कुछ समय पहिले सगीत तथा नृत्य हो रहे थे वहीं कुछ ही समय बाद हाहाकार भरा करुण क्रन्दन सुनाई तगड़ता है, ऐसी परिस्थिति में संगीत किसे माने ? आभूपण केवल लिश चित्त वृत्ति को पुष्ट करने वाले खिलौने हैं, उनमें समझदार का ह कैसा ? भोग तो आधि, व्याधि, उपाधि इन तीनों तापों था । तो ऐसे )ों के मूल में सुख कहां से हो