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उत्तराध्ययन सूत्र
और न कोई तोड़ सकेगा । योगमार्ग की सुन्दर शिक्षा प्राप्त वे दोनों त्यागी गुरुग्राना प्राप्त कर देश विदेश फिरते फिरते तथा अनेक ऋद्धि-सिद्धियों की प्राप्ति करते हुये हस्तिनापुर में थाते हैं जहां नमुचि प्रधानमंत्री था । नमुचि उन दोनों को देखकर पहिचान लेता है और कहीं ये लोग मेरा भंडाफोड़ (रहस्योद्घाटन ) न करदें इस कारण उन दोनों को नगर के बाहर निकलवा देता है । चित्त इस सब कष्ट को शांति, तथा विकार भाव से सह लेता है किंतु संभूति इस अपमान. को सहने में असमर्थ होता है और प्राप्त सिद्धि का उपयोग करने को तैयार होता है । चित्त, संभूति को त्यागी का धर्मः समझाता है और क्षमा धारण करने का उपदेश देता है किंतु संभूति पर उसका कुछ भी असर नहीं होता । उसके मुंह में मे धुंएँ के बादल के बादल निकलने लगते हैं ।
अन्त में इस बात की खबर हस्तिनापुर के राजा (चक्रवर्ती सनत्कुमार) को लगती है। वह स्वयं अपनी सेना तथा परिवार के साथ उस महा तपस्वीराज के दर्शनार्थ आता है " संभूति मुनि उस चक्रवर्ती राजा का वैभव देख कर मोहित हो जाता है ।
विषयों का आकर्षण देखो ! श्रनेकों वर्ष तक उग्र तपस्या करने वाले तथा ऋद्धि सिद्धियों के धारक मुनि भी उस के पाश में फंस जाते हैं । और अज्ञानी तथा अदूरदर्शी इस साधु को देखो ! वह अपने पूर्व बल से प्राप्त की हुई तपश्चर्या रूपी अमूल्य चिन्तामणि रत्न को क्षणिक कामनारूपी कोडी के लिये फेंक देने पर उतारू हो गया ! ( जेन दर्शन में इसे "निया"" कहते है ) चित्त के उपदेश का रस पर तनिक भी अस न हुआ ।
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