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उत्तराध्ययन सूत्र
प्रथम जन्म में वे दोनों दगार्ण देश में दास रूप में साथ ही साथ थे। वहां से भरकर दोनों कालिंजर नामक पर्वत पर साथ ही साथ मृग हुए। संगीत पर उनका गहरा मोह था। वहां से मर कर दोनों मृत गंगा के किनारे हंस रूप में जन्मे । वहां भी स्नेह पूर्वक रहे और प्रेमवश से एक ही साथ मरे। ' वहां से निकल कर उन दोनों ने काशी में चाण्डाल का जन्म पाया।
उस समय नमुचि नामक प्रधान अति बुद्धिमान तथा प्रकांड संगीत शास्त्री होने पर भी महा व्यभिचारी था। उसने राजा के अन्तःपुर की किसी स्त्री से व्यभिचार किया। यह बात राजा को मालुम हुई। तो उसने उसे मृत्यु दंड की शिक्षा दी।
होनहार बड़ी बलवान है । 'जो काहू से न हारे, लोऊ हारे होनहार से' -की कहावत अक्षरशः सत्य है। राजा द्वारा दोडत नमुचि फांसी के तख्ते पर खड़ा किया जाता है किन्तु फांसी देने वाले चांडाल (यह चांडाल चित्त और संभृति का पिता था) को नमुचि पर बड़ी दया या जाती है और वह उसे बचा कर अपने घर में छिपा लेता है और अपने दोनों पुत्रों (चित्त और संभूति के पूर्व भव के जीवों) को संगीत विद्या सिखाने पर नियुक्त करता है। योग्य गुरू के पास रह कर थोड़े ही दिनों में वे दोनों चालक गानविद्या में पारंगत हो गये। मनुष्य कितना भी वड़ा बुद्धिमान क्यों न हो किन्तु विपयों के . विकार बड़े ही जबर्दस्त हैं बुद्धिमान भी उनमें फंस जाते है। पड़ी हुई. बुरी आदत अनेक दुःख भोगने पर भी नहीं छूटती। व्यभिचार के अभियोग में दंडित नमुचि, दया करके चांडाल द्वारा बनाया गया था किन्तु नमुचि का स्वभाव नहीं छूटा । उसने चांडाल के घर में भी चार सेवन किया और