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चित्तसंभूतीय
चित्तसंभूति संबंधी
स्कृति (संस्कार) यह जीवन के साथ लगी हुई वस्तु
" है। जीवनशक्ति की यह प्रेरणा पुनः पुनः प्रारमा को कर्मबल द्वारा भिन्न २ योनियों में पैदा (जन्म ) करती है। परस्पर के प्रेम से ऋणानुबंध होता है और यदि कोई विरोधी अपवाद न हो तो समानशील के जीव-समान गुण वाले जीव-एक ही स्थान में उत्पन्न होते है; और अटूट प्रेम की सरिता में साथ २ रहते है और बाद में भी साथ ही साथ जन्म लेते हैं।
चित्त और संभूति दोनों भाई थे। दोनों प्रखंड प्रेम की गांठ से जुड़े हुए थे। एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं किन्तु पांच पांच जन्मों तक वे साथ ही साथ रहे थे। दोनों साथ ही साथ जीवित रहे थे। ऐसे प्रवल प्रेमी बंधु छठेभव में पृथक् पृथक् पैदा हुए। इसका क्या कारण है ? छठे जन्म में दोनों के मार्ग क्यों जुदे जुदे पड़े ? उसका प्रबल कारण एक की आसक्ति तथा दूसरे की निरासक्ति था। डॉ२ भाइयों का प्रेम शुद्ध होता गया त्यो त्यों वे दोनों विकास में साथ ही साथ उड़ते रहे।