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________________ उत्तराध्ययन सूत्र - Cry - - - (२६) तुम सब लोग नखों से पर्वत खोदना चाहते हो; दांतों से लोहा चबाना चाहते हो और हुताशन (अग्नि) को पैरों से वुझाना चाहते हो (ऐसा मैं मानती हूँ) क्योंकि तुमने ऐसे उत्तम भिक्षु का अपमान किया है । (२७) ऐसे महर्षि ( यदि क्रोध करें तो ); विपधर सप की तरह भयंकर होते हैं। इन उग्र तपस्वी तथा घोर व्रतधारी महापुरुप को तुम लोग भोजन के समय मारने को उद्यत हुए तो अब, जिस तरह अग्निशिखा में पतंगियों का समूह जल कर भस्म हो जाता है, वैसे ही तुम भी जल मरोगे। (२८) अब भी जो तुम अपना धन तथा प्राण बचाना चाहते हो तो तुम सब मिलकर उनकी शरण में जाओ और उनके चरणों में मस्तक नमाओ। यदि ये तपस्वीराज क्रुद्ध होंगे तो सारे लोक को जलाकर भस्म कर डालेंगे। टिप्पणी-भद्रा इन तपस्त्रीराज के प्रभाव को जानती थी। 'अभी तो यह देवी प्रकोप है, किन्तु जो अब भी नहीं मानोगे और उनकी शरण में नहीं जाओगे तो संभव है कि ये तपस्वी क्रुद्ध होकर सारे लोक को जलाकर भस्म कर ढाले-ऐसी मेरे मन में शंका. है"-सव को लक्ष्यकर उसने इसलिये ऐसा कहा । (२९) ( इतने में तो कोई विचित्र घटना होगई ) किसी की पीठ ऊपर तो किमी का माथा नीचे (आँधे ) चित्त पड़ गये। कोई कर्म तथा चेष्टा से सर्वथा रहित ( संज्ञाशून्य) होकर, कोई जमीन पर हाथ पैर फैलाकर पड़ गये ।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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