________________
हरिकेशीय
१०५
संयमी तथा उम्र मेरे पिता कौशल -
(२२) सचमुच पूर्व ब्रह्मचारी, जितेन्द्रिय, तपस्वी ये वे ही महात्मा है कि जिसने राज द्वारा स्वेच्छा पूर्वक दीगई मुझे नहीं स्वीकारा था । टिप्पणी - अप्सरा के समान स्वरूपवान युवती स्त्री स्वयं मिलते हुए भी उस पर लेशमात्र भी मनोविकार न लाकर अपने त्याग तथा संयम के मार्ग पर अडोल रहना यही सच्चे त्याग की, सच्चे संगम की, और सच्चे आत्मदर्शन की प्रतीति ( निशानी ) है |
(२३) ये महा प्रभावशाली, महा पुरुषार्थी, महान् व्रतधारी तथा उत्तम कीर्तिवाले महायोगी पुरुष है । उनका अपमान करना योग्य नहीं है । अरे ! इनकी अवगणना मत करो, नही तो ये अपने तेज से तुम्हें भस्म कर डालेंगे । सुनकर ( वातावरण पर
(२४) भद्रा के ऐसे सुमधुर वचनों को असर हो उसके पहिले ही ) देव समूह ऋषिराज की सेवा के लिये आने लगे और कुमारों को रोकने लगे । ( फिर भी कुमारों ने नहीं माना )
टिप्पणी- इस स्थल पर एक ऐसा परंपरा भी चालू है कि यहां भद्रा के
पति सोमदेव ने इन कुमारों को रोका था और देवों के वदले उसका ऐसा करना अधिक संभव भी है किन्तु मूल पाठ में 'जक्खा' शब्द होने से वैसा ही अर्थ किया है ।
(२५) और उसी समय आकाश में अन्तर्धान भयंकर रूपवाले बहुत से राक्षस वहां आये और उन तमाम लोगों को अदृश्य रहकर मारने लगे । उनकी अन्दरूनी मार से उनके अंग फूट निकले और कोई कोई तो खून की उल्टी करने लगे । उन लोगो की ऐसी दशा देखकर भद्रा फिर बोली:
-