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उत्तराध्ययन सूत्र
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फल पाओगे ? इस तरह के यक्ष के वचन मुनि के मुख से सुनकर सब ब्राह्मण क्रोध से लालपीले पड़ गये और वे
गला फाड २ कर चिल्लाने लगे:(१८) अरे ! यहां कोई क्षत्रिय, यजमान अथवा अध्यापक है
क्या ? विद्यार्थियों को साथ लेकर लकड़ी तथा ढंडों से इसकी खूब मरम्मत कर तथा अर्द्धचन्द्र दे (गलची पकड़
कर धक्का मार ) कर निकाल बाहर करे। (१९) अध्यापकों की ऐसी प्राज्ञा सुनकर बहुत से शिष्य वहां
आये और लकड़ी, डंडा और छड़ी तथा चाबुक से
मुनिराज को मारने को तैयार हुए। (२०) उसी समय परम सुन्दरी कौशल देश के राजा की पुत्री
भद्रा ने वहां पर पीटे जाते हुए उस संयमो को देखकर ऋद्ध कुमारों को शांत करते हुए यह कहाःयक्ष के अभियोग से (दैवी प्रकोप शांत करने के लिये) वश हुए मेरे पिताश्री द्वारा (यक्ष प्रविष्ट शरीर वाले ) इस मुनि को मैं अर्पण की गई थी, फिर भी अनेक महाराजों तथा देवेन्द्रों द्वारा पूजित इस मुनि ने मेरा मन से भी चितवन नही किया और शुद्धि में आते हो इनने
मुझे उगल (छोड़ ) दिया। टिप्पणी--इस भद्रा ने सरलभाव से वहां पर ध्यानस्थ मुनीश्वर का
अपमान किया था और इसका बदला लेने के लिये टसीके शरीर के साथ (मुनि-शरीर में प्रवेश करके यक्ष ने ) मुनि का विवाह का आयोजन कराया था। किन्तु जब मुनि ध्यान से उठे तो उनने भद्रा को शीव ही अपना संयमी होना सिद्ध कर तुम्हारा कल्याण हो, ऐसा आशीर्वाद देकर उसे मुक्त कर दिया ।