________________
हरिकेशीय
१०३.
जातिमान ( कुलीन ) तथा विद्यावान, जो ब्राह्मण हैं वे ही
बहुत उत्तम क्षेत्र हैं। टिप्पणी-ये वचन यज्ञशाला में स्थित क्षत्रियों के हैं। (१४) क्रोध, मान, हिंसा, झूठ, चोरी, परिग्रह ( वासना ) आदि
दोष जिनमे हैं ऐसे ब्राह्मण, जाति तथा विद्या इन दोनों से
रहित हैं। ऐसे क्षेत्र तो पाप को बढ़ाने वाले है। टिप्पणी-उस समय कुछ ब्राह्मण अपने धर्म से पतित होकर महाहिंसा
को ही धर्म मनवाने का प्रयत्न करते थे। ऐसे बाह्मणों को लक्ष्य करके ही यह श्लोक यक्ष की प्रेरणा से मुनि के मुखसे कहलाया
गया है। (१५) अरे ! वेदों को पढ़कर तुम उसके अर्थ को थोड़ा सा भी
नहीं जान सके ? इसलिये तुम सचमुच वाणी के भारवाहक ( बोम ढोने वाले ) हो । जो मुनि ऊँच या सामान्य किसी. भी घर में जाकर भिक्षावृत्ति द्वारा संयमी जीवन बिताता है वही उत्तम क्षेत्र है। यह सुनकर ब्राह्मण पंडितों के शिष्य बहुत ही
गुस्से हुए और वोलेः(१६) हमारे गुरुओं के विरुद्ध बोलने वाले साधु ! तू हमारे ही
सामने क्या बक रहा है ? भले ही यह सारा अन्न नष्ट हो '
जाय, परन्तु इसमे से तुझे कुछ भी नहीं देंगे। (१७) समितियों के द्वारा समाहित (समाधिस्थ ), गुप्तियों ( मन,
वचन, काय) से संयमी तथा जितेन्द्रिय मुझ समान संयमी को ऐसा शुद्ध खानपान न दोगे तो आज यज्ञ का क्या