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________________ हरिकेशीय किसी की आंखें निकल आई तो किसी की जीभ बाहिर निकल आई तो कोई माथा ऊंचाकर ढल पड़े। टिप्पणी-यह सब देव-प्रकोप से हुआ। (३०) इस तरह काष्ठभूत ( काठ के पुतले जैसे ) बने हुए उन शिष्यों को देखकर वह याजक ब्राह्मण ( भद्रा का पति) स्वयं बहुत ही खेदखिन्न हुआ और स्वयं अपनी पत्नी सहित मुनि के पास जाकर नमस्कार कर पुनः २ विनती करने लगा कि हे पूज्य ! आपकी जो निदा तथा तिर स्कार हुआ है उसके लिये हमें क्षमा करो। टिप्पणी-कोशलराज ने तपस्वी से छोड़ी हुई भद्रा कुमारी का विवाह सोमदेव नामक ब्राह्मण के साथ कर उसे ऋपिपनि ही बनाया था। उस जमाने में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र के कर्म भेद तो थे किन्तु आज के से जातिभेद न थे। इसीलिये परस्पर में बेटी व्यवहार छूट के साथ होता था-ऐसा अनुमान होता है। (३१) हे वंदनीय ! अज्ञानी, मूर्ख तथा मंदबुद्धि बालकों ने आपकी जो असातना की है उसे क्षमा करो। आप समान ऋषि पुरुप महादयालु होते हैं । वस्तुतः वे कभी कोप करते ही नहीं। अपना कार्य करके यक्ष चला गया। इसके बाद मुनि श्री सावधान हुए और यह विचित्र दृश्य देखकर । बहुत विस्मित हुए । उनने विनयवंत उन ब्राह्मणों से कहा(३२) इस घटना के पहिले, बाद में या अभी भी मेरे मन में लेशमात्र भी कोप या द्वेष नहीं है । ( परन्तु यह सब देख
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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