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-हरिकेशीय
•(३) मन से, वचन से, काय से गुप्त ( इन तीनों को वश में
रखने वाले ) और जितेन्द्रिय ऐसे वे मुनिराज भिक्षा के के लिये ब्रह्मयज्ञ की यज्ञबाड के पास आकर खड़े हुए। ', .(४) उग्र तप के कारण सूखी हुई देह तथा जीर्ण उपधि (वस्त्रों)
तथा उपकरण (पात्र आदि) वाले उन मुनिराज को
आते देखकर अनार्य पुरुष हंसने लगे। टिप्पणी-मुनि के वस्त्र कंबल पात्र आदि को उपधि तथा उपकरण
कहते हैं। (५) जातिमद से उन्मत्त बने हुए, हिंसा में धर्म मानने वाले,
___ इन्द्रियों के दास, तथा ब्रह्मचर्य से रहित वे मूर्ख ब्राह्मण र साधु के प्रति ऐसे कहने लगे:-- (६) दैत्य जैसे रूप वाला, काल के समान भयंकर आकृति
वाला, बैठी नाक वाला, फटे वस्त्र वाला, तथा मलिनता से पिशाच जैसे रूप वाला, सामने कपड़ा लपेट कर यह कौन चला प्रारहा है ? ( उन लोगो ने अपने मन में कहा )
जब मुनि आकर उनके पास खड़े हुए तब उनने मुनिसे कहा:र ७ ) अरे ! ऐसा अदर्शनीय (न देखने योग्य ) तू कौन है ?
किस आशा से तू यहां आया है ? जीर्ण वस्त्रों तथा मलिन रूप से पिशाच जैसा दीखने वाला तू यहां से जा.सा यहां
तू क्यों खड़ा है ? (८) इसी समय महामुनि का अनुकंपक (प्रेमी), तिन्दुक वृक्ष
वासी यक्ष, अपने शरीर को गुप्त रखकर ( मुनि के शरीर में प्रविष्ट होकर ) यों कहने लगाः