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________________ उत्तराध्ययन सूत्र महीने की तपश्चर्या के अन्त में पारा के लिये उसी यज्ञशाला भें पधारे। वे अपरिचित ब्राह्मण साधु की हंसी मजाक उड़ाने लगे । जब इससे भी साधु पर कुछ असर न पड़ा तब वे उन्हे मारने लगे। ऐसे कुसमय में उस तिन्दुक यक्ष ने वहां उपस्थित 'होकर क्या किया, तथा भद्रा देवी को जब सब वात मालम हुई तब उसकी क्या दशा हुई, सारा वातावरण तपश्चर्या के प्रभाव से कसा महक उठा, आदि सब बातों का इस ष्प्रध्याय में चन किया है। व और जाति का विधान अभिमान चढ़ाने के लिये नहीं किया गया था । व व्यवस्था वृत्ति भेद के अनुसार की गई थी । उसमें ऊंच नीच के भेदों को कोई स्थान नहीं था । किन्तु जब से उसमें ऊंच नीच का भेद भाव घ्याया है तब से सच्ची चर्ण व्यवस्था तो मिट गई है और उसके स्थान में ( दूसरों के प्रति ) तिरस्कार और ( अपनेपन के बडप्पन का ) अभिमान ये वो भाव श्रागये है । १०० MA 2^^^ ~1 भगवान महावीर ने जातिवाद का बड़े जोरों से खण्डन किया था । गुणवाद का प्रचार किया था, सब को प्रभेदमाव रूपी अमृत पिलाया था और दीन, हीन तथा पतित जीवों का उद्धार किया था । भगवान सुधर्म ने जम्बू स्वामी से कहा : ( १ ) चांडाल कुल में उत्पन्न किन्तु उत्तम गुणी ऐसे हरिकेश ' बल नामक एक जितेन्द्रिय भिक्षु हो गये हैं । (२) ईर्ष्या, भाषा, ऐपणा, आदान भंड निक्षेप, उच्चार पासवरणखेल जल संधारण पारिठावणिया इन पांचों समितियों को पालन करने वाले तथा सुसमाधि पूर्वक यन्त्र करने वाले,
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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