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________________ हरिकेशीय ९९ वापिस फिरते हुए प्रत्येक सखी ने खेल में सभामंडप के एक एक स्तम्भ की गोदी (जेट) भरलो । सन्ध्या का अन्धकार और भी गाढ़ होता जा रहा था। भद्रा सब से पीछे रह गई थी। ‘अपनी सखियों को स्तम्भों से खेल खेलती देख कर उसे भी कौतूहल हुआ और अन्धकार में स्पष्ट न दीखने से मुनि हरि. केश को स्तम्भ समझ कर वह उन्हीं से लिपट गई। यह देख कर वे सखियां खिल खिला उठी और बोली : "तुम्हारे हाथ में तुम्हारे पति आगये"। और वे हंसी करने • लगीं। भद्रा इससे बहुत चिड़ी और उसने मुनि महाराज का बड़ा अपमान किया। यक्ष को इससे बहुत क्रोध आया। भद्रा तो उसी समय अवाक वेहोश होकर नीचे गिर पड़ी। यह बात तमाम शहर में वायुवेग से फैल गई । भद्रा के पिता कौशलराज भी दौड़े दौड़े वहां आये । अन्त में देवी कोप दूर करने के लिये यक्षप्रविष्ट शरीर वाले उस तपस्वीजी के साथ भद्रा का विवाह होने की तैयारियां होने लगी। उसी समय मुनि के शरीर में से यक्ष अदृश्य होगया। तपस्वीजी जब सावधान हुए और यह सब गड़बड़ देखी तो बड़े ही आश्चर्य में पड़ गये। अन्त में अपने उग्र संयम तथा अपूर्व त्याग की प्रतीति देकर के वे महायोगी - वहां से प्रयाण कर गये। , आगे जाकर इसी भद्रादेवी का विवाह सोमदेव नामक ब्राह्मण के साथ हुआ। कुल परम्परा के अनुसार इस दंपति (स्त्री पुरुप के युगल ) ने ब्राझणों द्वारा महायज्ञ कराया। यजमान रूप में जब यह दम्पती मन्त्रोच्चारणादि क्रिया कर रहा था उसी समय ग्राम, नगर, शहर आदि सर्व स्थलों में अभेदभाव से विहार करते हुए वे विश्वोपकारी महामुनि एक
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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