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हरिकेशीय
१२ हरिकेश मुनि सम्बन्धी मात्मविकास में जाति का बन्धन नहीं होता। चां
३५ डाल भी आत्मकल्याण के मार्ग का अाराधन कर सकता है। चांडाल जाति में उत्पन्न होने वालों का भी पवित्र हृदय हो सकता है।
महामुनि हरिकेश; चांडाल कुल में उत्पन्न हुए थे फिर भी गुणों के भन्डार थे। वे पूर्व के योग संस्कार होने से, निमित्त पाकर वैराग्य धारण कर त्यागी बने थे। त्यागी बनने के बाद एक यक्ष ने उनकी कठिन से कठिन कलौटी (परीक्षा) की थी
और उसमें सोने की तरह खरा उतरने पर वह उन महामुनि पर प्रसन्न हुआ और सदैव उनके साथ दास वन कर रहता था।
एक समय यत्न मन्दिर के सभा मंडप में (जहां वह यक्ष रहता था) कठिन तपश्चर्या से कृशगात्र हरिकेश ध्यान मग्न होकर अडोल खड़े थे। इसी समय कौशलराज की पुत्री भद्रा अपनी सखियों के साथ उस मन्दिर में दर्शनार्थ पाई । गर्भद्वार के पास जाकर सब ने पेट भर के दर्शन किये । दर्शन करके