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बहुश्रुत पूज्य
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(२९) जैसे पर्वतों में, ऊंचा तथा सुन्दर और अनेक औषधियों से शोभित मन्दार पर्वत उत्तम है वैसे ही बहुश्रुतज्ञानी भी अपने अनेक गुणों से (अन्य ज्ञानियों की अपेक्षा अधिक) उत्तम है ।
(३०) जैसे अक्षय उदक ( जिसका जल कभी न सूखे ) स्वयंभूरमण नामक समुद्र; भिन्न २ प्रकार की मणि मुक्ताओं से पूर्ण है वैसे ही बहुश्रुतज्ञानी अनेक गुणों से पूर्ण है । (३१) समुद्र समान गंभीर, बुद्धि ( विवाद ) द्वारा कभी पराभूत न होने वाला, संकटों से त्रास न पाने वाला ( सहिष्णु ), काम भोगों में अनासक्त, श्रुत से परिपूर्ण तथा समस्त प्राणियों का रक्षक महापुरुष ( बहुश्रुतज्ञानी ) कर्म का नाश कर अंत में मोक्ष पाता है ।
(३२) इसलिये उत्तम अर्थ की गवेषणा ( खोज ) करने वाला ( सत्यशोधक ) भिक्षु; श्रुत ( ज्ञान ) में अधिष्ठान करे ( आनंदित रहे ), जिससे वह स्वयं सिद्धि प्राप्त कर दूसरों को भी सिद्धि प्राप्त करा सके ।
'टिप्पणी -- ज्ञान अमृत है । ज्ञानी सर्वत्र विजयी होता है । ज्ञान भन्तःकरण की वस्तु है और वह शास्त्रों द्वारा, सत्संग द्वारा, अथवा महापुरुषों की कृपा द्वारा प्राप्त होता है ।
'ऐसा मैं कहता हूं'
इस प्रकार 'बहुश्रुतपूज्य' नामक ग्यारहवां अध्ययन समाप्त हुआ ।