________________
उत्तराध्ययन सूत्र
दण्ड, चर्म, मणि, कांगणी, सेनापति, गाथापति, वार्धिक, पुरोहित,
स्त्री, अश्व तथा हाथी । (२३) जैसे एक हजार नेत्र ( आंखों) वाला, हाथमें वन धारण
करने वाला, पुर नामक दैत्य का नाश करने वाला, तथा देवों का अधिपति इन्द्र शोभित होता है वैसे ही बहुश्रुत ज्ञानरूपी सहस्र नेत्र वाला, क्षमा रूपी वज्र को धारण करने वाला, मोहरूपी दैत्य का नाशक ज्ञानी शोभित
होता है। (२४) जैसे अंधकार का नाश करने वाला उगता सूर्य तेज से
देदीप्यमान होता है वैसे ही आत्मज्ञान के तेज से ज्ञानी
प्रभावान होता है। (२५) जैसे नक्षत्रपति (तारों का राजा ) चंद्रमा, ग्रह तथा नक्षत्रों
से घिरा हुआ पूर्णिमा की रात्रि को पूर्ण, शोभासे प्रकाशित होता है वैसे ही आत्मिक शीतलता से बहुश्रुत ज्ञानी
शोभायमान होता है। (२६) जैसे लोक समूह के भिन्न भिन्न अन्नों से पूर्ण तथा सु
रक्षित भण्डार शोभित होते हैं वैसे ही (अंग, उपांग
शास्त्रों की विद्या से पूर्ण) ज्ञानी शोभित होता है। (२७) सब वृक्षों में जैसे अनाहत नामक देव का जंबू वृक्ष शोभित
होता है उसी तरह ( सब साधुओं में ) ज्ञानी शोभायमान
होता है। (२८) नील पर्वत से निकल कर सागर से मिलने वाली सीता
नाम की नदी जिस तरह सब नदियों में श्रेष्ठ है वैसे ही सर्व साधकों में ज्ञानी श्रेष्ठ है ।