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उत्तराध्ययन सूत्र
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(३) जिन पांच स्थानों से ज्ञानकी प्राप्ति नहीं हो सकती उनके
नाम ये ई-(१) मान, (२) क्रोध, (२) प्रमाद,
(४) रोग, और (५) श्रालस्य । (४-५) पुनः पुनः (१) हास्य मीठा न करने वाला, (२)
सदा इन्द्रियों का दमन करने वाला, (३) फिसो के छिद्र ( दोप) न देखने वाला, (४) सदाचारी, (५) अनाचार न करने वाला ( मयादित), (६) अलोलुपी, (७) अक्रोधी, (८) सत्याग्रही-~से पुरुष को ही
सच्चा ज्ञानी कहते हैं। शिक्षाशील के उपरोक्त गुण है। 'टिप्पणी-शांति, इंदिय दमन, म्वोपरष्टि, सदाचार, प्राचार्य, भना
सक्ति, सत्याग्राम और सहिष्णुता-ये ८ गुण जिनमें पाये जाय वही सच्चा पंदित है। केवल शाख पढ़ने में कोई परित नहीं
हो जाना। (६) निम्नलिखित १४ स्थानों में रहने वाला संयमी अविनीत
(अज्ञानी) कहा जाता है और वह कभी मुक्ति नहीं
पा सकता। 'टिप्पणी~यही अविनीत का अर्थ अकर्तव्यशील है किन्तु घालु
प्रकरणानुसार उसका अर्थ अज्ञानी किया है। (७) जो वारंवार कोप करता है । (२) प्रवन्ध (विश्वास भंग) ___करता है। (३) मित्रभाव करके पुनः पुनः उसे तोड़
देता है, और (४) शास्त्र पढ़कर अभिमानी होता है। टिप्पणी-किसी की गुप्त बात को दूसरों के पास प्रकट करना उमे
'प्रबंध' कहते हैं। (८) (५) नो दोष (भूल) करने पर भी, उसे रोकने की चेष्टा