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________________ ९५ तथा विवाद के अवसर पर अभिभूत न होकर तटस्थ एवं प्रहता है । बहुश्रुत पूज्य (१९) जैसे तीक्ष्ण (पैने ) सींग वाला और अच्छी तरह भरी हुई कुब्ब वाला ( पशुओ के ) टोले का नायक साँड शोभित होता है उसी तरह ( साधु-समूह ) में बहुश्रुतज्ञानी शोभित होता है । २०) जैसे प्रति उम्र तथा तीक्ष्ण दंत वाला पशु श्रेष्ठ सिंह; सामान्य रीति से पराभूत ( हारता ) नहीं है वैसे ही बहुश्रुतज्ञानी किसी से भी नहीं हारता । (२१) जैसे शंख, चक्र तथा गदा से सुशोभित वासुदेव (विष्णु) सदा ही अप्रतिहत (अखंड ) बलवान् रहते हैं वैसे ही बहुश्रुतज्ञानी भी, (अहिंसा, संयम और तप से) सदाकाल बलिष्ठ रहता है । टिप्पणी- वासुदेव अकेले ही उनके पांचजन्य शंख, दसलाख योद्धाओं को हरा सकता है और सुदर्शन चक्र तथा सुदर्शन चक्र तथा कौमोदकी गदा अस्त्र हैं । (२२) जैसे चतुरंगिनी (घोड़ा, हाथी, रथ, प्यादे इन चारों से युक्त) सेना से समस्त शत्रुओं का नाश करने वाला महान् ऋद्धिधारक ( नवनिधि, १४ रत्नों का और ६ खंड पृथ्वी का अधिपति ) चक्रवर्ती शोभित होता है वैसे ही चारगतियों को अन्त करने वाला तथा १४ विद्यारूपी लब्धियों का स्वामी बहुश्रुतज्ञानी शोभित होता है । ( राजाश्रों में चक्रवर्ती श्रेष्ठ होता है ) टिप्पणी- चक्रवर्ती के १४ रत्रों के नाम ये हैं: - चक्र, छत्र, असि, -
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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