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बहुश्रुत पूज्य
न कर (उसे) ढंकने का प्रयत्न करता है, (६) जो अपने मित्रों (हितैषियों) पर भी क्रोध करता है; (७) अत्यन्त प्रिय मित्रजनों की एकान्त में निन्दा करता है । ( ९ ) और (८) अति वाचाल, (९) द्रोही, (१०) अभिमानी, (११) लोभी, (१२) असंयमी, (१३) साथियों की अपेक्षा अधिक हिस्सा लेने वाला, और (१४) अप्रीति ( शत्रुता ) करने वाला। जिसमें इनमें से एक भी दुर्गुण हो उसे 'अविनयो' कहते हैं ।
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(१०) निम्न लिखित १५ स्थान
( गुणों) वाले को विनयी कहते । नीचवर्ती (नम्र ), ( २) अचपल, (३) मायी (सरल) (४) कुतूहली ( क्रीड़ा से दूर रहने वाला) ।
टिप्पणी- नीचवर्ती अर्थात् नम्र जो मन में यह समझता है कि मैं तो
कुछ भी नहीं हूँ ।
(११) और जो (५) अपनी छोटी सी भूल को कोशिश करता है (६) क्रोध ( कषाय) की प्रबन्धों से दूर रहने वाला, (७) सत्र के से रहने वाला, (८) करता है ।
भी दूर करने की वृद्धि करने वाले साथ मित्र भाव शास्त्र पढ़ कर जो अभिमान नहीं
उपेक्षा नहीं करता,
(१२) (९) जो पाप की (१०) मित्रो पर कभी कोप न करने वाला, (११) अप्रिय मित्र के विषय में भी एकांत में कल्याणकारी ही बोलने वाला ।
(१३) (१२) कलह तथा डमर आदि क्रीडाओं का त्याग करने वाला । (१३) ज्ञानयुक्त, (१४) खानदान, (१५) एवं संयम की लज्जा रखने वाला है उसे सुविनीत कहते हैं ।