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________________ उत्तराध्ययन सूत्र - no m w wwwwwwwwww -~ ~~ - ~~- ~ कहा हुश्रा भगवान का कथन सुनने के बाद गौतम, राग तथा द्वेप दोनों को नाशकर सिद्धगति को प्राप्त हुए। टिप्पणी-गौतम जब संयम में अस्थिरचित हुए थे उस समय भगवान ने गौतम को लक्ष्य करके यह उपदेश दिया था । गौतम महाराज के जीवन में यह उपदेश ओत प्रोत हो गया और इससे उनने अंतिम उद्देश्य प्राप्त किया और अविनश्वर सुख प्राप्त किया । हम लोगों के लिये “गोयम" हमारा मन है। अन्तरारमा की कृपा अपने जीवन पर अनेक प्रसंगों पर होती रहती है। यदि उस आवाज को सुन कर उसको हम अपने भाचरण में उतार दें तो अपना भी वेड़ा पार हो जाय । मनुष्य जीवन का प्रत्येक क्षण अमूल्य रत्न के समान कीमती है, अमृत समान है । हम जिस भूमिका पर है उस धर्म पर भडग स्थिर रहते हुए सावधान होकर भागे पढ़ें तो यह जीवनयात्रा सफल हो जाय । फिर यह समय और साधन नहीं मिलेंगे इसलिये प्राप्त साधनों का सदुपयोग करते हुए प्रत्येक क्षण सावधान रहना ही उचित है। ऐसा मैं कहता हूँइस तरह "दुमपत्रक" नामक १० वां अध्याय समाप्त हुश्रा । جانے
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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