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________________ द्रुमपत्रक ८९ नजर रख और वैसा करने में अब समय मात्र का भी प्रमाद न कर। टिप्पणी-संयम जैसे अमृत को पी कर फिर विषयों के विष को कौन पीना पसन्द करेगा ? गहरे गड्ढे में से महा मुसीवत से एक बार निकल कर फिर उसी गड्ढे में पहना कौन चाहेगा ? (३३) जैसे निर्बल भारवाहक ( मजूर ) कुरस्ते जाकर बहुत बहुत पीडित होता है इसलिये हे गौतम ! तू अपना मार्ग न भूल । अपने मार्ग पर स्थिर रहने में तू एक समय का - भी प्रमाद न कर। (३४) हे गौतम तू सचमुच अपार महासागर की पार पर आ चुका है । किनारे तक आकर अब तू वहीं क्यों खड़ा हो रहा है ? इस पार आने की शीघ्रता कर । इस पार पाने में अब तू एक समय का भी प्रमाद न कर । (३५) (संयम में स्थिर रहने से) हे गौतम ! अकलेवर (अजन्मा) श्रेणी का अवलम्बन लेकर अब तू उस सिद्ध लोक को प्राप्त करेगा जहां जाकर फिर कोई लौट कर इस संसार में नहीं आता । वह स्थान सुखकारी कल्याणकारी तथा अत्यन्त श्रेष्ठ है। वहां जाने में तू अव एक समय मात्र का भी प्रमाद न कर। (३६) हे गौतम ! ग्राम या नगर में जाते हुए भी तु संयमी, ज्ञानी तथा निरासक्त होकर विचर । शांति माग (आत्म शांति ) में वृद्धि कर । इस में तू एक समय मात्र का भी प्रमाद न कर। (३७) इस तरह अर्थ तथा पदों से शोभित और सदभावना से
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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