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________________ उत्तराध्ययन सूत्र लिया है। अव तु वमन किये हुए उन विषयों को पुनः पान न कर। हे गौतम ! (पान करने की भावना को दूर करने में ) तू एक समय मात्र का भी प्रमाद न कर । टिप्पणी-त्याग की हुई वस्तु का एक या दूसरे प्रकार से स्मरण करना भी पाप है, इसलिये त्यागियों को चाहिये कि वे अप्रमच भाव से आत्मचिंतन में हो मग्न रहें। (३०) उसी तरह अपने मित्रजनों, भाई बंधों तथा विपुल धन संपत्ति के ढेरों को एक बार स्वेच्छापूर्वक छोड़कर अव तू उनका पुनः स्मरण न कर। हे गौतम (ऐसा करने में) तू एक समय मात्र का भी प्रमाद न कर । . टिप्पणी-३१ वे श्लोक के अंतिम दो चरणों में भगवान ने गौतम को संयम में स्थिर करने के लिये, भविष्य में भी उत्तम पुरुष क्या आश्वासन लेकर संयममार्ग में स्थिर रहेंगे वह बताया है। (३१) आज स्वयं तीर्थकर इस क्षेत्र में विद्यमान नहीं हैं तो भी अनेक महापुरुषों द्वारा अनुभूत उनका मोक्ष प्रदर्शक मार्ग तो आज भी दिखाई दे रहा है। इस प्रकार भविष्य में सत्पुरुष आश्वासन प्राप्त कर संयम में स्थिर रहेंगे । तो अभी ( मेरी उपस्थिति में ) हे गौतम ! इस न्याय युक , भार्ग में तू क्यों प्रमाद करता है ? तू न्याययुक्त मार्ग पर चलने में एक समय मात्र का भी प्रमाद न कर। टिप्पणी-गौतम को लक्ष्य करके भगवान ने कहा है कि सबको वर्तमान में कार्य परायण ( कर्तव्यतत्पर ) होना चाहिये । (३२) हे गौतम ! कंटकीले मार्ग (अर्थात संसार ) को छोड़कर . तु राजमार्ग (जैनधर्म ) पर पाया है, इसलिये तू उसपर
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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