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द्रुमपत्रक
से कोई तरुण, कोई युवान, कोई बृद्ध भी हुए होंगे। कोई कोई उपरोक्त दशा का अनुभव भी करते होंगे और कोई पीछे अनुभव करेंगे परन्तु कभी न कभी सबकी यही दशा आगे पीछेहोगी अवश्य । उपरोक्त गाथाओं में यद्यपि वर्तमान काल की प्रयोग किया है फिर भी ये दशाए ́ भूत, भविष्य तथा कालों में समान रूप से लागू होती हैं ।
क्रियाओं का वर्तमान इन
तीनों
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युवानों को भी किस बात का भय रहता
१ (२७) जिनके शरीर जीर्ण नहीं है ( अर्थात् जो युवान हैं ) उन को भी पदार्थों के प्रति अरुचि का, फोड़ो फुन्सी के दर्दों का, विशुचिका ( कोलेरा ) आदि भिन्न २ रोगों का, सदा डर बना रहता है और आशंका लगी रहती है कि कहीं वे बीमार न पड़ जांय, जिससे उनका शरीर कष्ट पाये अथवा मृत्यु पावे । इसलिये हे गौतम! तू एक समय मात्र का भी प्रमाद न कर ।
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टिप्पणी- सारा शरीर ही रोगों का घर है । ज्यों २ निमित्त मिलते जाते हैं त्यों २ उनका उद्रेक होता जाता है । रोग वाल्यावस्था, युवावस्था, वृद्धावस्था - सभी अवस्थाओं में होते हैं, इसलिये शरीर सौंदर्य या भंग रचना में आसक्त न होकर आत्म चिंतन करना ही उचित है । (२८) शरदऋतु में विकसित हुआ कमल, में विकसित हुआ कमल, जिस तरह जल में उत्पन्न होने पर भी जल से भिन्न रहता है उसी तरह तू संसार में रहते हुए भी संसारी पदार्थों की आसक्ति से दूर रह । हे गौतम! भोगों की आसक्ति को दूर करने में तू एक समय मात्र का भी प्रमाद मत कर ।
(२९) कनक और कान्ता (पत्नी) को त्याग कर तेने साधुत्व