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उत्तराध्ययन सूत्र
(५२) इस बात को सुन कर हेतु तथा कारण से प्रेरित नमिराजर्षि ने देवेन्द्र को यह उत्तर दिया:
(५३) कामभोग शल्य फाँ हैं जो बारीक होने पर भी बहुत कष्ट देती हैं । कामभोग विप । कामभोग काले सर्प के समान हैं। काम ( भोगोपभोग ) की प्रार्थना करते २ यह बिचारा जीवात्मा उनको तो नहीं पाता है, किन्तु दुर्गंतिगामी जरूर हो जाता है ।
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टिप्पणी-संसार भर में कामभोगों में आसक्त ऐसा कोई भी प्राणी नहीं है कि जिसकी आशा मृत्यु समय भी-भोगों से दूर होते होते भी - पूर्ण होसकी हो । भाशा या वासना ही जन्म का कारण हैं ।
चार कपायों के फल (५४) क्रोध से अधोगति में जाना पड़ता है । मान करने से प्रथमगति प्राप्त होती है । माया करने से सद्गति प्राप्त नहीं होती, किन्तु लोभ से तो इस लोक और परलोक दोनोंका भय है । (दोनों ही नष्ट होते हैं )
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टिप्पणी- शास्त्रकारों ने चारों कपायों के फल बहुत ही दुःखकर बताये हैं, परन्तु उन सब में भी लोभ तो सबसे अधिक हानिकर्ता कहा है। लोभी का वर्तमान जीवन भी अपकीर्तिमय होता है और पाप का दुर्धर घो घढ़ने से उसका परलोक भी बिगड़ता है । इसी लिये लोभ को 'पाप का बाप' कहा है ।
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(५५) उसी समय ब्राह्मण का रूप छोड़ कर और इन्द्र का रूप, धारण कर मधुर वाणी से नमिराजर्षि की स्तुति करता हुश्रा देवेन्द्र इस तरह बोला: