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उत्तराध्ययन, सूत्र
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नथा शरीर को भोगना पड़ता है। यह निरर्थक दन्द है । दुष्ट वासनाओं को दन्डित करना यही सच्चा दंड है और मुमुक्षु को उन्हीं को
दन्हित करने का प्रयास करना चाहिये। (३१) इस अर्थ को सुनकर, हेतु तथा कारण से प्रेरित देवेन्द्र ने
नमिराजर्पि से पुनः प्रश्न कियाः(३२) हे क्षत्रिय ! हे नराधिप ! जिन राजाओं ने तुम्हें नमस्कार
(तुम्हारी प्राधीनता स्वीकार) नहीं किया उनको वश करके
फिर जायो। (३३) इस अर्थ को सुनकर हेतु तथा कारण से प्रेरित नमिरा
जर्षि ने देवेन्द्र को यह उत्तर दियाः) दुर्जेय युद्ध में दसलाख सुभटों को जीतने की अपेक्षा एक मात्र प्रात्मा को जीतना यह विशेप उत्तम है और यही
सच्ची जीव है। ' टिप्पणी ग्राह्य युद्धों में अकेले ही लाखों वीरों को मारने वाले विजयी
को नैनधर्म वीर नहीं मानता क्योंकि यह सच्ची जीत नहीं है किन्तु तात्विक दृष्टि से तो वह हार है। जो अपनी आत्मा को जीतता है
वही सच्चा वीर है और वही सच्ची विजय है। (३५) प्रात्मा के साथ ही युद्ध करो। बाहर के युद्धों से कुछ
हाथ नहीं लगेगा। शुद्ध आत्मा द्वारा अशुद्ध आत्मा को
जीत कर सच्चा सुख प्राप्त किया जा सकता है। टिप्पणी-इस छोटे से श्लोक में बड़ी ही गम्भीर बात कही गई है।
इस पर खूब विचार करना चाहिये । (३६) पांच इन्द्रियां, क्रोध, मान, माया, लोभ तथा दुर्जय श्रात्मा .., को जीतना यही उत्तम है क्योंकि आत्मा के जीतने पर