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नमि प्रव्रज्या
(२५) इस अर्थ को सुन कर हेतु, तथा कारण से प्रेरित नमिरा
जर्षि ने देवेन्द्र को यह उत्तर दिया। (२६) यदि कोई चलते चलते मार्ग में घर बनाता है तो यह
सचमुच बड़ी ही संदेह-युक्त बात है। जहां जाने की इच्छा हो वहां (निर्दिष्ट स्थान में) पहुंच कर ही शाश्वत (स्थायी)
घर बनाना चाहिये। टिप्पणी-इस श्लोक का अर्थ बहुत गहरा है। शाश्वत स्थान अर्थात्
मुक्ति । मुमुक्षु का उद्देश्य जो केवल मुक्ति है वह उसे प्राप्त किये विना मार्ग में अर्थात् इस संसार में घरबार के बन्धन में क्यों
पड़ेगा? (२७) इस अर्थ को सुन कर हेतु तथा कारणों से प्रेरित देवेन्द्र
ने नमिराजर्षि से पुनः यह प्रश्न कियाः(२८) हे क्षत्रिय ! लोमहर, गॅठकट, तस्कर, और डाकुओं का
निवारण करके तथा, नगर कल्याण करके बाद में दीक्षा
ग्रहण करो। टिप्पणी-लोमहर आदि चोरों के मिन्न २ प्रकार हैं। (२९) इस अर्थ को सुनकर हेतु तथा कारण से प्रेरित नमिरा
जर्षि ने देवेन्द्र को यह उत्तर दिया। (३०) कई बार मनुष्य निरर्थक दंड (हिंसा) की योजना करते हैं।
ऐसे स्थान में निर्दोष भी अपनी किसी भी भूल के बिना ही बन्ध जाते हैं, और असली गुन्हेगार (कईवार ) छूट
जाते हैं। टिप्पणी-विशेष रीति से, दुष्ट मन या दुष्ट वासना ही दोप कराती है, ' परन्तु उसको कोई दन्द नहीं देता । उनके पाप का परिणाम इन्द्रियों