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उत्तराध्ययन सूत्र
सुशोभित तथा वहां के मनुष्यों को सदा बहुत लाम
पहुँचाने वाला ऐसा एक चैत्यवृक्ष है। . (१०) रे भाई ! यह मनोहर चैत्यवृक्ष अाज प्रचन्ड आंधी से.
गिर रहा है जिससे अशरण होने से दुःखी बने हुए तथा व्याधि से पीडित ये पक्षी आक्रन्द ( शोकाकुल
कोलाहल ) कर रहे हैं। टिप्पणी-मिथिला के नगर निवासियों को पक्षियों की तथा नमिराजा
को वृक्ष की उपमा दी गई है। (११) इस अर्थ को सुन कर हेतु तथा कारण से प्रेरित देवेन्द्र के
नमिराजर्षि को सम्बोधन कर यह प्रश्न पूंला । (१२) हे भगवन ! यह अग्नि और उसकी सहायता करनेवाला
वायु इस मन्दिर को भस्म कर रहे हैं और उससे (तुम्हाग) अन्तःपुर भी जल रहा है। तो आप उधर क्यों नहीं
देखते ? (१३) इस अर्थ को सुन कर हेतु कारण से प्रेरित नमिराजर्षि ने
देवेन्द्र को ये वचन कहे :(१४) जिसका वहां (मिथिला में) कुछ भी नहीं है ऐसे हम
यहां सुख से रहते हैं और सुख पूर्वक जीते हैं, (इसलिये हे ब्राह्मण ! ) मिथिला के जलते हुए भी हमारा कुछ भी
नहीं 'जलता। (१५) क्योंकि स्त्री पुत्रादि परिवार से मुक्त हुए और सांसारिक
व्यापार से पर ( दूर ) हुए भिक्षु के लिये न तो कोई
वस्तु प्रिय होती है और न कोई अप्रिय । टिप्पणी-जहां भासक्ति होती है वहीं,राग है और वही द्वेष है। 'नहां