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नमि प्रव्रज्या
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योगमार्ग में प्रवृत्त हुए | उन भगवान ने जाकर एकान्त में अपना अधिष्ठान जमाया ( किया ) ।
( ५ ) जब नमिराजा जैसे महान राजर्षि का अभिनिष्क्रमण हुआ और प्रव्रज्या ( गृह त्याग की दीक्षा ) होने लगी तब तमाम मिथिला नगरी में हाहाकार फैल गया ।
टिप्पणी- उस समय मिथिला एक महान नगरी थी। उस नगरी के after में अनेक प्रान्त, शहर, नगर और ग्राम थे। ऐसे राजर्षि को ऐसे देवोपम भोगों को भोगते हुए एकदम त्याग भावना जागृत हुई इसमें उनका पूर्व जन्म का योगबल ही कारण है। ऐसे व्यक्ति का सदाचार, प्रजाप्रेम, न्याय आदि अपूर्व हों और इससे उसके विरह में उसके स्नेहोवर्ग को भावात लगे यह स्वाभाविक ही है।
( ६ ) उत्तम प्रव्रज्या स्थान में स्थित उन राजर्षि से ब्राह्मणरूप में उपस्थित इन्द्र ने इस प्रकार प्रश्न किया ।
टिप्पणी- नमि राजर्पि की कसौटी करने के लिये इन्द्र ने ब्राह्मण का रूप धारण किया था । उन में जो प्रश्नोत्तर हुए उनका इस प्रकरण में उल्लेख किया है ।
(७) हे आर्य ! आज मिथिला नगरी में कोलाहल से व्याप्त ( हाहाकारमय ) और चीत्कार शब्द घर घर में महल महल में क्यो सुनाई पड़ते हैं ।
( ८ ) इसके बाद उस बात को सुनकर, हेतु तथा कारण से प्रेरित नमिराजर्षि ने देवेन्द्र को यों उत्तर दिया ।
(९) मिथिला में शीतल छायावाला, मनोहर पत्र पुष्पों से