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उत्तराध्ययन सूत्र
कि जहां पर 'दो' है वहीं पर शोर होता है, जहां पर केवल । एक होता है वहां शांति रहती है । इस गृढ चिंतन के परिणाम (निमित्त) से उन्हें अपने पूर्वजन्म का स्मरण हुया और शांति की प्राप्ति के लिये बाह्य समस्त वन्धनों को छोड कर, एकाकी विचरने की उन्हें तीव्र इच्छा जागृत हुई । व्याधि शांत होते ही ये योगीराज सांप की कांचली की तरह राजपाट और राणियों के भोगविलासों को छोड कर त्यागी हो गये और तपश्चर्या के मार्ग के पथिक बने । उस अपूर्व त्यागी की कसौटी इन्द्र तक ने की । उन के प्रश्नोत्तर और त्याग के माहात्म्य से यह अध्ययन समृद्ध हुआ है। (१) देवलोक से च्युत होकर (आकर), नमिराज मनुष्य
लोक में उत्पन्न हुए और मोहनीय कर्म से उपशान्त ऐसे नमिराज को उपरोक्त निमित्त मिलने से अपने पूर्व जन्मों
का स्मरण होता है। (२) अपने पूर्व जन्मों के स्मरण करने से उन भगवान नमि
राजा को स्वयमेव बोध प्राप्त हुआ। वे अपने पुत्र को राज्य देकर श्रेष्टधर्म (योगमार्ग) में अभिनिष्क्रमण
(प्रवेश ) करते हैं। (३) उत्तम अन्तःपुर में रहते रहते उन नमिराजा ने देवोपम
(देवभोग्य ) ऊंचे प्रकार के भोग भोग कर अव ज्ञानी (उनकी असारता जानकर ) वन कर सब को त्याग
दिया। (४) (वे) वे छोटे छोटे नगरों तथा प्रान्तों से जुडी हुई
मिथिला नगरी, महारथियों से संयुक्त सेना, युवती रानियों तथा समस्त दासी दासों को छोड़ कर निकल गये और