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नमि प्रव्रज्या
नमि राजर्षि का त्याग
थिला के महाराजा नमिराज दाघज्वर की दारुण
- वेदना से पीडित हो रहे थे। उस समय महारानियां तथा दासियां खुव चन्दन घिस रहीं थीं। हाथ में पहरी हुई चूड़ियों की परस्पर रगड़ से जो शब्द उत्पन्न होता था वह महाराज के कान पर टकरा कर महाराज की वेदना में वृद्धि करता था इससे महाराज ने प्रधान मन्त्री को बुला कर कहा “ यह गड़बड़ सही नहीं जाती, इसे बन्द करात्रो"। चन्दन घिसने वालियों ने हाथ में सौभाग्य चिन्ह स्वरूप केवल एक एक चूड़ी रख कर वाकी की सब उतार डालीं। चूडियों के उतरते ही शोर वन्द होगया।
थोडी देर वाद नमिराज ने पूंछा, "क्या कार्य पूरा होगया"? मन्त्री-नहीं महाराज। नमिराज-तो शोर कैसे वाद हो गया ?
मन्त्री ने ऊपर की हकीकत कह सुनाई। उसी समय पूर्व योगी के हृदय में एक आकस्मिक भाव उठा। उसने सोचा