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उत्तराध्ययन सूत्र
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वर्णन किया है इसको जो कोई आचरण में लायेंगे वे ( भवसागर) पार करेंगे और ऐसे ही नरपुंगवों ने उभयलोक ( इस लोक तथा परलोक ) की सच्ची सिद्धि की
(ऐसा समझो)। टिप्पणी-राग और लोम के त्याग मे मन स्थिर होता है। चित्त
समाधि के विना योग की साधना नहीं होती। योग साधना यह तो न्यागी का परम जीवन है। उसकी सिद्धि में कंचन और कामिनी के आसक्ति विषयक बंधन प्रति क्षण विनरूप होते हैं। मुनि ने (वाह्यरूप से तो) वे त्यागे ही हैं फिर भी ( अनन्तकालीन स्वभाव के कारण ) आसक्ति बनी रहती है। , उस आसक्ति से भी दूर रहने के लिये निरन्तर जागृत ( सावधान ) रहना यही संयमी के जीवन का एकत्तम अनिवार्य कार्य है।
ऐसा मैं कहता हूँइस प्रकार कपिल मुनि संबंधी आठवां अध्ययन समाप्त हुश्रा।
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